السبت، 24 أبريل 2021

صور محترقة... للمبدع مصطفى محمد كبار

صور  محترقة

أنا  
لم  أكن  لأحيا  
لولا  موتي 
فأنا  لست  بمحمود 
درويش  
لأحرك  مشاعر
الحجارة  بقصائدي
و لن  ألحق  بأحرفه 
الشجن
التي  لامست  الفؤاد  و
الوجدان بروائعه
الجميلة 
و لكني  أبكي  مثله 
وجعاً  و  ألماً 
في  القصيدة  
لوحدي
أسيرُ  مثله  بنعشي
 على درب
الموت 
لأبكي  كلما  صرت 
للبعيد   
في  جرحي  أكثر
و أكثر
و مثله   أنا 
أرفض  ثوب  الشتاء
بمنفاي
و إني  
أمضيت  خمسين
عاماً
أصنعُ  بقطار  عمري 
في الرحيل
و  عندما  إنتهيت 
منه 
نسيت  أن  أبني  لها
محطة
لكي  أستريح  من
سفري  الطويل 
و لا  أنا   نزار 
قباني
لأكتب  شعراً  و  
عشقاً  
بكلماتي  للغزل  
بعاشقة متمردة
و  أمدح  بالنساء  
الجميلات  أمام
المرايا
لتحضنني  تلك
المرأة  في 
المساء
خلسةً  عن  ضياء
القمر  
لأرقص  معها  على
 سيمفونية  موزار
فأنا  
لست  سوى
دمعة  من  القهر 
على  طريق
السفر 
و  لا  أحد  يشبهني
بجرحي 
و  لا  شيء  ينتمي
إلي  
إلا  موتي  و أرشيف
كلماتي
بصور   القصيدة  
المحترقة
فأنا  شاعر  الأحزان 
أكتب   صراخ  
أوجاعي 
بملح  البحر  الراحل
و  لا  أستطيع  
أن ألملم  بقايا
جسدي  من
ورائي  
بغربة   إنتمائي

مصطفى محمد كبار 
حلب   سوريا  ٢٠٢١/٤/١٦

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